भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अनेकता मे एकता को लिए हमारा भारत विश्व का सबसे सुंदर और निराला देश है। भारत को आजादी मिले पूरे पचहत्तर वर्ष हो चुके है। इस दौरान बहुत से राजनैतिक घटनाक्रम हुए। देश ने तरक्की भी करी है और आज भारत जिस मुकाम पर है उसमे मौजूदा नैतृत्व का बहुत बड़ा योगदान है। पचास साल तक देश मे एक ही पार्टी का शासन रहा, उसके बाद कुछ साल मिलिजुली सरकारे रही। सबने देश को आगे बढ़ाने मे योगदान दिया है। इसमे कोई पार्टी खराब या अच्छी नहीं हो सकती है। हर राजनैतिक पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और वे उसी के अनुरुप कार्य करते है। अंतोगत्वा सबका एक ही धेय होता है देश को विकास के पथ पर अग्रसर करवाना।
देश ने इंदिरा गांधी को देखा है , उनको दुर्गा की संज्ञा दी। क्योंकि उनमे नैतृत्व की क्षमता थी। वे देश को सर्वोपरि मानती थी। पर उनके साथ भी ईमर्जन्सी का दाग लगा हुआ है। वे काँग्रेस की नेत्री थी और उस समय तक देश मे नेताओ ने अपने आप को मर्यादों मे जिया और निभाया है। बाद मे अटल बिहारी बाजपाई जी आए उनको विरोधी भी प्यार करते थे, वे भी मर्यादा को कभी लांगते नहीं थे। नब्बे तक के दशक की मै बात करू तो राजनीति मे मर्यादा थी और सब उसका पालन करते थे। कोई भी पार्टी रही हो पर सब के लिए देश पहले था। पर मैने देखा है जब से देश मे भारतीय जनता पार्टी का संगठन मजबूत हुआ और डबल इंजन की सरकार का आविर्भाव हुआ तब से ही देश मे अजीब सा माहौल बनाया जा रहा है।
आज का माहौल थोड़ा बदल गया है। स्वार्थ ज्यादा हावी हो गया है। दल दल की राजनीति ने देश को भाषा, मजहब, पंत, क्षेत्र मे बाँट दिया है। पर ये सब कर कौन रहा है? और ये दल दल कैसे बन रही है। अगर हम इन सब बातों पर गौर करें तो हमारे संविधान ने ही देश मे बहुदलीय प्रणाली को रखे रहने का अधिकार दिया है। मेरा मानना है की उस समय के संविधान निर्माताओ ने संविधान मे उस समय की क्षेत्रीय विविधताओ और मतों को देख कर ये निर्णय लिया हो, पर आज के परिपेक्ष में हमे इस पर पुनः विचार करना चाहिए। मै पिछले आठ साल से देश मे जो राजनैतिक परिदृश्य बदल रहा वो देख रहा हूँ। जिस तरह से काँग्रेस के मणिशंकर अय्यर भाषा का प्रयोग करते है, जिस तरह से और भी बहुत से नेता बोल रहे है। वो बहुत ही निंदनीय है। उसमे चाहे कोई भी पार्टी हो।
मेरा ये संक्षिप्त लेख लिखने का तातर्प्य बस ये था की ये सब क्यों हो रहा है। राजनेता राजधर्म की या संस्कारों की मर्यादा को क्यों तोड़ रहे है। हाल के गुजरात चुनाव मे आम आदमी पार्टी के एक नेता ने मोदी जी की माता को अपशब्द कहे। कुछ दिन पहले पवन खेड़ा ने मोदी जी के पिता जी पर तंज कसा। चोंकीदार चोर है। किसी ने सौ सिर वाला रावण तो किसी ने नीच शब्द कहे। आखिर ये सब कहने से पहले उनके दिमाक मे ये बात क्यों नहीं आई की मोदी जी देश के प्रधानमंत्री है । प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं बल्कि देश का होता है। उनका सम्मान देश का सम्मान है।
मै व्यक्तिगत तौर पर विपक्ष के ज्यादातर नेताओ के व्यवहार की भरतसन्ना करता हूँ की वे मुद्दे की लड़ाई क्यों नहीं लड़ते, माना की सत्ताधारी पार्टी ने उनको पिछले आठ सालों से सत्ता से बाहर रखा है पर इसका ये मतलब नहीं है की वेवजह मान हानि की जाय। जब देश मे ये सब होता है तो वो किसी पार्टी विशेष की अवमानना नहीं बल्कि पूरे देश के सम्मान को नुकशान पहूँचाता है। क्या ये सब सही है?
राहुल गांधी विदेश मे जाकर जब ये बोलते है की भारत मे लोकतंत्र खत्म हो गया है और अमेरिका और यूरोप के देशों को आगे आने चाहिए इसको बचाने के लिए , तो देश की क्या इज्जत रखी एक ग्रांड ओल्ड पार्टी के मुख्या ने। ये सब निंदनीय है।
अभी हालिया बयान दिल्ली के सबसे ज्यादा पढे लिखे मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का है जिसमे वे कहते है की देश का प्रधानमंत्री एक अनपढ़ है, भ्रष्ट है, तानाशाह, और बहुत कुछ। पर ये सब कहते हुए हम लोग ये भूल जाते है की हम अपने सिर को खुद ही नंगा कर रहे है। आखिर केजरीवाल कहना क्या चाहते है। साथ ही उन्होंने कहा है की अदानी का असली मालिक मोदी है, अदानी तो मैनेजर है और मोदी जी का पचास हजार करोड़ से ज्यादा का पैसा अदानी मे लगा है। क्या भारत की जनता इतनी मूर्ख है की झूठ को सच मान बैठे, अगर केजरीवाल की बात सही है तो फिर माफी क्यों मांगी जाती है।
ये सब राजनैतिक दल देश की जनता को मूर्ख ही समझते है। जो समाचार पत्रों मे ये मीडिया मे दिखाया जाएगा जनता उसको सच मान बैठेगी। अगर ये मानस है तो वाकई मे जनता मूर्ख है। विपक्ष को सत्ता चाहिए इसलिए वे मान सम्मान को बेच सकते है , उनको सत्ता चाहिए तो देश मे भाई भाई को लड़ा सकते है। उनको सत्ता चाहिए तो पंजाब में उनकी नाक के नीचे खालिस्थान की गतिविधियों को नजर अंदाज कर देते है। सत्ता चाहिए तो दिल्ली मे दंगा हो जाता है, ये सब का एक ही मर्म है की सत्ता के लालच मे संवेदनाओ को खत्म कर दिया है।
चलो अगर मोदी जी अनपढ़ है तो थोड़ा केजरीवाल ये प्रकाश डाले कि एक अनपढ़ आदमी कैसे इतना ज्ञान रख सकता है। सत्तर साल की उम्र मे कैसे 18 घंटे काम करते है, देश को एक सूत्र मे बांधे रखा है, विदेशों मे भारत की शान बड़ी है, देश G20 देशों की मजबानी कर रहा है। देश जिस नेता को विश्व नेता मान रहा है अगर वो अनपढ़ भी है तो ये तो हमारे लिए फक्र की बात होनी चाहिए की पढे लिखे न होने के उपरांत भी वे लोगों के दिलों को जीत पा रहे है और भारत को विश्व पटल पर सम्मान दिला रहे है। बात मोदी जी की नहीं है उस पद कि हैं, जिस पर वो बैठे है, उसका सम्मान जरूरी है।
मेरा केजरीवाल जी से अनुरोध है की इस तरह के बयान केवल गर्त मे जाने का साधन ही है। देश के प्रधानमंत्री का अपमान देश का अपमान है।
मुझे नहीं लगता की ये सब भारत जैसे पुराने सांस्कृतिक और लोकतान्त्रिक देश मे होना चाहिए। आज इस तरह की जो भी अशोभनीय घटनाए हो रही है उसके पीछे एक ही सोच है। अंग्रेजों ने अपने प्रभाव को उनके जाने के बाद भी रखे रखा। अंग्रेज नहीं चाहते थे की भारत कभी एक हो, इस कारण वामपंत की जड़ों को रोप गए। देश को क्षेत्रीय आधार पर , जातपात, रंगरूप, भाषा, धर्म के आधार पर राजनीति करने का अधिकार दे दिया। उनकी इसी सोच और बांटो और राज करो की नीति को पोषित करने के लिए तीन सौ से अधिक राजनैतिक पार्टीय देश मे कार्यरत है, और वे सब संविधान के तहत चल रही है। धर्मनिरपेक्ष है, हालांकि हिन्दू धर्म मे भी अब बंटवारा हो गया है। हिन्दुओ मे से निचले तबकों को निकाल दिया है उनको बहुजन या दलित नाम देकर एक अलग पंत इन लालची पार्टियों ने बना दिया है। हिन्दुओ से जैन, सिखों को तो पहले ही अंग्रेजों ने अलग कर दिया था अब, और भी पंथों मे बांटने के त्यारी है। आगे चलकर ब्राह्मण, राजपूत, कायस्त, बनिये सब अलग कर लिए जायेगे। पर देश पहले है, अंदर कुछ भी करते रहो, लड़ो , गाली गलोज जो करना है करो। पर जब देश को तोड़ने के लिए बाहरी ताकते किसी को लालच दे तो भारत के हर नागरिक को अपने अपने मत भुला कर एक होना चाहिए।
आज वही हो रहा जो अंग्रेज चाहते थे , आज भारत को मतों,मजहवों मे बांटना आसान लग रहा है। ये सब हो रहा है देश मे विध्यमान क्षेत्रीय पार्टियों और उनके मंतव्वो के वजह से।
अगर देश मे दो दलीय प्रणाली स्थापित हो जाती है तो देश विरोधी ताकते अपने मंसूबों मे कामयाब नहीं हो पाएगी। दो दलीय प्राणली देश के लिए अब बहुत जरूरी है। तभी देश के प्रधानमंत्री के पद की प्रतिष्ठा बनी रहेगी और देश सुरक्षित रहेगा।
वरना देश मे छोटी छोटी राजनीतिक पार्टियों पर देश के दुश्मनों का अजेन्डा चलता रहेगा। मोदी जी अनपढ़ है या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता बल्कि प्रधानमंत्री दूरदर्शी और संवेदी है वो जरूरी है। देश से बढ़कर कुछ नहीं है। देश ही नहीं रहेगा तो राजनीति कहाँ करोंगे मेरे नेताओ। इस पर विचार करने की जरूरत है हम सबको।
ये लेख मेरी अपनी सोच है।