धर्म की परिभाषा को हर कोई अपनी जरूरत के हिसाब से नहीं कर सकता। धर्म क्या है? मनुस्मृति के अनुसार धर्म का अर्थ है,
“धौतिः क्षमा दमो अस्तेयम् शोचम् इन्द्रिय निग्रहः।” धीर विद्या सत्यं अक्रोधो दशकम् धर्म लक्षणम्।
मनु के अनुसार धर्म का अर्थ ये दस आज्ञाएँ हैं:
1. **धृति (धीरता)** - दृढ़ता, साहसी एवं साहसी चरित्र।
2. **क्षमा** - क्षमा करना, जब कोई शक्तिशाली और मजबूत स्थिति में हो।
3. **दामो** - सभी जुनून और भावनाओं पर नियंत्रण।
4. **अस्तेयम्** - किसी भी प्रकार की चोरी न करना। इसमें भौतिक, वाणी और मानसिक चोरी शामिल है।
5. **शोचा** - शारीरिक, मौखिक और आध्यात्मिक स्वच्छता और पवित्रता।
6. **इन्द्रिय निग्रह** - अपनी सभी इन्द्रिय-इन्द्रियों और प्रलोभनों पर दृढ़ एवं मजबूत पकड़।
7. **धीह** - बुद्धि और अंतर्ज्ञान की क्षमता विकसित करना।
8. **सत्यम्** - सभी पहलुओं और परिस्थितियों में सत्य का पालन करना।
9. **विद्या** - कठिन अध्ययन करके ज्ञान और बुद्धि प्राप्त करना।
10. **अक्रोध** - क्रोध पर नियंत्रण, जिसे यदि नियंत्रित न किया जाए तो निर्णय क्षमता की हानि होती है।
धर्म की उपरोक्त व्याख्या को ध्यान से पढ़ें तो पता चलेगा कि धर्म एक व्यवस्था है जो स्वयं ईश्वर ने संसार में व्याप्त सभी जीवों को अनुशासन में बांधने और उन्हें परम निर्वाण की राह दिखाने के लिए बनाई है। धर्म केवल एक ही है जो ईश्वर ने बनाया है। धर्म इंसान द्वारा बनाया ही नहीं जा सकता क्योंकि इंसान अपनी सुविधाओं, भूगोलिक, सांस्कृतिक तथ्यों को ध्यान में रखकर उसे बनाएगा जो हर क्षेत्र के इंसान के लिए अलग परिभाषा होगी।
धर्म वह है जो सत्य हो, नित्य हो और सर्वत्र हो। अगर वह सत्य से परे है, नित्य नहीं है और हर जगह नहीं है, या कुछ अनुमानों के अनुसार बनाया गया है तो वह मजहब हो सकता है, धर्म नहीं।
सत्य क्या है? सत्य वह है जो नित्य हो रहा हो, अविरल हो और जिसमें सबका कल्याण हो। जीवों में आत्मा का वास, आत्मा रूपी ईश्वर का अंश ही सत्य है। सूर्य का पूर्व से निकलना और पश्चिम में अस्त होना सत्य है। चंद्रमा का अपनी कलाओं के साथ पृथ्वी का चक्कर लगाना, वायु का निरंतर बहना, ऋतुओं का नियत समय पर बदलना, बीजों से अंकुरण का एक विशाल वृक्ष को संजोए रखना भी सत्य है।
जीवों में परस्पर संबंध और संवाद ही सत्य है। असंख्य जीवों के होने के बावजूद सभी अपनी परिधि में रहते हैं और एक चक्र में भोजन श्रृंखला को बनाए रखना सत्य है। माता-पिता द्वारा संतान की उत्पत्ति और उसके अनुसार संबंधों का सम्बोधन और रिश्तों का जुड़ाव तथा समाज में मर्यादाओं को निभाते हुए संतुलन को बनाए रखना ही धर्म है। यही धर्म सास्वत है, साथ ही प्रकृति को भी एक जीवित व्यक्ति की तरह संभालना भी धर्म का ही अंश है।
धर्म की व्याख्या को गंभीरता से पढ़ा जाए तो आपको मालूम चलेगा कि सनातन ही इसकी श्रेणी में आता है। सदा से सत्य की तरह जो साथ है वही सनातन है।
“सत्यात् न प्रमदितव्यम्” “धर्मात् न प्रमदितव्यम्”
सत्य और सामाजिक सिद्धांतों की कभी उपेक्षा या उनसे विचलित न हों।
“मातो देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव”
हमारी यही अवधारणा अनादिकाल से अविरल समस्त संसार में विद्यमान है। सनातन सत्य का रूप है, ईश्वर का बनाया नियम है।
जैसे-जैसे समाज उन्नत होते गए उन्होंने अपने मत और समझ के अनुसार धर्म की शाखाओं का निर्माण करना चालू किया। आज विश्व में जितने भी मजहब हैं, उनकी उत्पत्ति ज्यादा से ज्यादा 2500 साल पुरानी है, जिसमें मुख्य रूप से बौद्ध, ईसाई और इस्लाम शामिल हैं।
भारत से ही सभी मजहबों को प्रेरणा मिली है। बौद्ध धर्म जो कि धम्म है, उनकी उत्पत्ति गौतम बुद्ध से हुई जो कि भारत से थे। देखा जाए तो बौद्ध धर्म सनातन धर्म की एक शाखा है, पर कालांतर में धर्म के अनुयायियों ने इसे अलग धर्म की उपाधि दे दी। वामपंथी लोगों ने जैन और सिखों को भी अलग धर्म में बांट दिया है जबकि ये दोनों ही हिन्दू धर्म से हैं।
धर्म की राजनीति और राजनीति में धर्म अगर साथ-साथ चल रहे हैं तो वह समय दूर नहीं जब भारत में बाबाओं द्वारा अलग पथ प्रदर्शन की वजह से बहुत से धर्म बनने शुरू होंगे। जैसे आज हिन्दू समाज में देखा जाए तो मालूम चलेगा कि लोग बहुत से गुरुओं को अपना मार्गदर्शक मानते हैं, जैसे आशाराम जी, गुरु राम रहीम, रामपाल जी, राधा स्वामी, जय गुरुदेव आदि। कालांतर में यही अनुयायी आगे चलकर एक अलग मजहब को जन्म देकर उसे धर्म का नाम दे देंगे और इसमें राजनीति गहराई तक बस चुकी है।
देश में बहुत से वामपंथी सोच के राजनैतिक दल हैं जो सनातन को खत्म करने की बात कह रहे हैं और उन लोगों का साथ हम हिन्दू ही दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने हमें जातियों में बांट दिया है, हमे स्वार्थी बना दिया है। वामपंथी विचारधारा ने हिंदू धर्म के साथ कई प्रकार की छेड़छाड़ की है, जिनका उद्देश्य उसकी परंपराओं और मान्यताओं को कमजोर करना है। सबसे पहले, वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को पुनर्लेखित किया, जिसमें हिंदू राजाओं और उनकी उपलब्धियों को कम महत्व दिया गया और मुस्लिम आक्रमणकारियों को उदार रूप में प्रस्तुत किया गया।
शैक्षिक पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किए गए, जिसमें हिंदू धर्म के महान व्यक्तित्वों और उनकी शिक्षाओं को कम महत्व दिया गया और विदेशी संस्कृतियों को अधिक प्रमुखता दी गई। इसके अलावा, वामपंथी सरकारों ने मंदिरों और धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया, जिससे उनकी स्वतंत्रता और स्वायत्तता को सीमित किया गया। समाज में विभाजन और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए जाति आधारित राजनीति को प्रोत्साहित किया गया, जिससे हिंदू समाज में असंतोष और विभाजन बढ़ा। धार्मिक भावनाओं का अपमान भी वामपंथी विचारधारा का एक हिस्सा रहा है, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं और धार्मिक प्रतीकों का उपहास किया गया।
वामपंथी मीडिया और कला ने भी हिंदू धर्म का नकारात्मक चित्रण किया, फिल्मों, नाटकों और साहित्य में हिंदू धार्मिक आस्थाओं का मजाक बनाया।
इन सभी प्रयासों का उद्देश्य हिंदू धर्म की मूलभूत मान्यताओं को चुनौती देना और उसे कमजोर करना रहा है। हालांकि, हिंदू धर्म की गहराई, सहिष्णुता और अनादि परंपराओं ने इन चुनौतियों का सामना किया है।
भारत जैसे सनातनी देश मे श्रीराम को अपनी ही जन्मभूमि मे 500 साल टेंट मे रहना पड़ा क्योंकि बाहरी ताकते इतनी प्रबल हो गई जिससे हजारों साल लोग गुलामी मे रहे। आज भी हमारे मन विचार मे वह गुलामी है। आज भी देश मे मुख राजनैतिक पार्टीय केवल तुष्टीकरण के बल पर देश के बहुसंख्यक समाज को हाशिये पर रखे हुए है।
पर सनतानियों को धर्म से जो संस्कार मिले हुए है वही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। कोमल हृदय और जीवों के लिए दया भाव ही सबसे बड़ी निर्बलता दर्शाती है। इतिहास गवाह है की भारत ने कभी किसी विदेशी धरती पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि धर्म की डोर और संस्कार और सीख "वसुदेव कुटुंबकम " की भावना दिलों मे थी। जब विश्व को अपना परिवार मान लिया तो दुश्मनी किससे करेंगे। यही सत्य है।
जिस सनातन को मिटाने के लिए काँग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, टीमसी, एनसीपी, डीमके, आमआदमी पार्टी ने इंडी गठबंधन बनाया है उस धर्म की महिमा को जाने। सनातन क्या है पहले उसे जाने। भारत मे रहने वाला आज का मानव इतिहास मे सनातनी ही था पर कालांतर मे या तो अज्ञानता या तलवार के जौर पर किसी ने इस्लाम को अपनाया औ किसी ने इसाईत को।
**सनातन धर्म: एक अनादि और अनंत पथ**
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म भी कहा जाता है, विश्व का सबसे पुराना धर्म है। यह केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि जीवन का एक व्यापक मार्गदर्शन है जो मानवता के हर पहलू को छूता है। 'सनातन' शब्द का अर्थ है 'अनादि' और 'अनंत', अर्थात् जो सदा से है और सदा रहेगा। यह धर्म न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि दार्शनिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का एक समृद्ध संग्रह है।
सनातन धर्म का मूलभूत सिद्धांत 'वसुधैव कुटुंबकम्' है, जिसका अर्थ है 'सारा संसार एक परिवार है'। यह सिद्धांत मानवता को एकता, प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। यह धर्म न केवल मनुष्यों के प्रति, बल्कि सभी जीव-जंतुओं और प्रकृति के प्रति भी करुणा और आदर का भाव रखने की शिक्षा देता है।
सनातन धर्म की जड़ें वेदों में हैं, जिन्हें मानवता का सबसे पुराना साहित्यिक धरोहर माना जाता है। वेद चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन वेदों में ज्ञान, कर्म और उपासना के सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन है। उपनिषद, भगवद गीता, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ भी सनातन धर्म के महत्वपूर्ण अंग हैं। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि नैतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण भी देते हैं।
सनातन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा 'धर्म' है। धर्म का अर्थ कर्तव्य, नैतिकता और न्याय है। मनुस्मृति के अनुसार, धर्म के दस लक्षण हैं: धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध। ये लक्षण एक व्यक्ति को जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
योग और ध्यान भी सनातन धर्म के अभिन्न अंग हैं। योग का अर्थ है 'मिलन', अर्थात् आत्मा का परमात्मा से मिलन। योग के आठ अंग हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ये अंग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के साधन हैं। ध्यान से मन की शांति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का भी विशेष महत्व है। यह धर्म बहुदेववादी है, जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि। यह विविधता मानवता की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को दर्शाती है।
सनातन धर्म का महत्वपूर्ण पहलू कर्म सिद्धांत है। यह सिद्धांत कहता है कि हर क्रिया का फल होता है, जो इस जीवन में या अगले जीवन में भुगतना पड़ता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को सद्कर्म करने और पापकर्म से बचने की प्रेरणा देता है। पुनर्जन्म की अवधारणा भी इसी सिद्धांत पर आधारित है।
सनातन धर्म का लक्ष्य मोक्ष है, जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति और परमात्मा के साथ मिलन है। मोक्ष प्राप्ति के चार मार्ग हैं: कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और राज योग। ये मार्ग व्यक्ति को आत्मज्ञान और परमशांति की ओर ले जाते हैं।
अंत में, सनातन धर्म एक सार्वभौमिक धर्म है, जो समय और स्थान की सीमाओं से परे है। यह धर्म मानवता को सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा और न्याय का मार्ग दिखाता है। यह केवल एक आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है, जो हर व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में प्रेरित करती है। सनातन धर्म का संदेश है: "सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः", अर्थात् "सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों"। यही सनातन धर्म की सच्ची पहचान है।
सनातन धर्म का अपमान करने वाले अक्सर इसके गहन और व्यापक सिद्धांतों को समझने में असमर्थ होते हैं। यह धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का एक संपूर्ण मार्गदर्शन है, जो मानवता के हर पहलू को छूता है। आज के परिवेश में, जब हम तेजी से बदलती दुनिया में जी रहे हैं, सनातन धर्म की प्रासंगिकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
सनातन धर्म की गहनता और व्यापकता
सनातन धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं और यह धर्म वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में निहित गहन ज्ञान और सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है। यह धर्म न केवल धार्मिक अनुष्ठानों पर आधारित है, बल्कि नैतिकता, आध्यात्मिकता और जीवन जीने के उच्च आदर्शों पर भी केंद्रित है।
अपमान और अज्ञानता
आज के समय में, कई लोग सनातन धर्म का अपमान करते हैं क्योंकि वे इसके गहन सिद्धांतों और शिक्षाओं को समझने में असमर्थ होते हैं। यह अज्ञानता और पूर्वाग्रह से उत्पन्न होती है। धर्म को सतही रूप से देखकर और बिना गहराई में जाए इसके मूल्यांकन करना अनुचित है।
आधुनिक परिवेश में सनातन धर्म की प्रासंगिकता
सनातन धर्म की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। इसका 'वसुधैव कुटुंबकम्' का सिद्धांत आज के वैश्विक समाज में भी महत्वपूर्ण है, जो कि सभी मानवता को एक परिवार मानता है। योग और ध्यान की प्रथाएँ मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता
सनातन धर्म का अपमान करने वालों के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। इसे केवल एक धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक व्यापक जीवन दर्शन के रूप में समझाने की आवश्यकता है। हमें इसके गहन सिद्धांतों, जैसे कि कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म, और मोक्ष के महत्व को समझाने की आवश्यकता है।
समावेशिता और सहिष्णुता
सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता इसकी समावेशिता और सहिष्णुता है। यह धर्म सभी को स्वीकार करता है और हर व्यक्ति को अपनी आस्था और विश्वास के साथ जीने की स्वतंत्रता देता है। यह विविधता को सम्मान देता है और सभी जीवों के प्रति करुणा का संदेश देता है।
निष्कर्ष
सनातन धर्म का अपमान करने वाले अक्सर इसके गहन और व्यापक सिद्धांतों को समझने में असमर्थ होते हैं। आज के परिवेश में, जब हम तेजी से बदलती दुनिया में जी रहे हैं, सनातन धर्म की प्रासंगिकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके गहन सिद्धांत, जैसे कि 'वसुधैव कुटुंबकम्', योग, ध्यान, कर्म सिद्धांत, और मोक्ष की अवधारणा, आज भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अपमान को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है, ताकि लोग इसके वास्तविक मूल्य को समझ सकें और इसका सम्मान कर सकें। सनातन धर्म का संदेश है: "सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः" अर्थात् "सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों"। यही सनातन धर्म की सच्ची पहचान है।
लेखन : बलवंत सिंह राणा ,