Friday, March 10, 2023

बड़े बड़े रीटेल के कारोबारी भी नहीं हिला पाए किराना व्यापारियों की नीव।


2020 में भारतीय रिटेल बाजार 5000 अरब रुपए का था, जब देश के दो बड़े कारोबारियों ने इस सेक्टर में कदम रखा। इस खुदरा बाजार ने अंबानी और अलिक अडानी दुनिया की सबसे बड़े रिटेल स्टोर वॉलमार्ट, टाटा, बिड़ला, आरपीजी ग्रुप, सैंज ग्रुप कई नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं। इन तमाम कंपनियों ने बीते 20 सालों में देश के रिटेल मार्केट में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मौजूदा समय में आज भी देश का रिटेल मार्केट या यूं कहें किराना स्टोर मजबूती के साथ खड़ा हुआ है।

जब देश में मॉर्डन ट्रेड स्टोर्स ने एंट्री ली थी, तब मान लिया गया था कि देश के किराना स्टोर इनके सामने टिक नहीं पाएंगे और जल्द बंद हो जाएंगे, लेकिन किराना स्टोर अपनी जमीन पर खड़े हैं और स्टैटिस्टा डॉट कॉम के सर्वे के अनुसार रिटेल ट्रेड में इनकी हिस्सेदारी करीब 88 फीसदी से ज्यादा है। मॉर्डन ट्रेड स्टोर्स सिर्फ 10% की बाजार हिस्सेदारी नहीं बढ़ पाई .....

आखिर क्या वजह रही कि इन दिग्गजों की बाजार हिस्सेदारी नहीं बढ़ पाई : इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने बताए चार प्रमुख कारण...

1. छोटे शहरों में वॉल्यूम की कमी

लो अनकम लेवल, मुख्य रूप से से ग्रामीण आबादी भारत स्टोर खोलना एक बड़ी चुनौती है। वॉलमार्ट ने कम आबादी वाले शहरों में काम कर शुरुआती सफलता हासिल की थी. लेकिन भारतीय बाजार में बड़े स्टोरों को प्रोफिट के साथ चलाने के वॉल्यूम बहुत कम हैं।

2 .  फ्रेश फूड है पसंद

ज्यादातर भारतीय परिवार घर का बना खाना पसंद करते हैं, इसलिए रेडी-टू- ईट और रेडी-टू-कुक फूड, साथ ही फ्रोजन और डिब्बाबंद भोजन, भारतीय रसोई में जगह नहीं ले सके। भारतीय दिन में कम से कम दो बार फ्रेश फूड बनाना पसंद करते हैं। भारतीयों के लिए फ्रीज या ठंडे भोजन का अर्थ है बासी खाना।

3. पूरे साल उपलब्धता

दुनिया के बाकी देशों के विपरीत भारत का मौसम काफी अलग रहता है, यहां पर गर्मी, सर्दी, बरसात हर तरह के मौसम देखने को मिलते जिसकी वजह से  सालभर सब्जियां और अनाज की कोई कमी नहीं रहती है। सालभर सबकुछ फ्रैश मिलता है।

4. हर नुक्कड़ पर हैं दुकानें

महानगरों और अन्य  बड़े शहरों में बहुत भीड़ है, और केवल 7 फीसदी भारतीय परिवारों के पास कार है, इस प्रकार, वॉलमार्ट जैसे बडे स्टोर, जो अमरीका के शहरों के बाहर स्थित हैं, भारत में बहुत कम सफल रहे। इसके अलावा देश वेस्टर्न देशों की तुलना में प्रति मिलियन बहुत अधिक आउटलेट हैं, रेडी-टू-ईट स्नैक्स हर नुक्कड़ पर अवेलेबल है।

उपरोक्त लेख पर मेरी विवेचना इस प्रकार है। 

जो भारत से किराना का सफाया करने के इरादे से आए थे, वे अब खुद को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत में किराना रिटेल में व्यवधान लाने की बात करने से पहले सभी को यही सोचना होगा। डिस्रप्शन क्या डिस्टर्बन्स है यानि ये विघ्न है ? और अगर नहीं है तो स्टार्टअप्स द्वारा अरबों डॉलर क्यों जलाए गए? अगर ऐसा नहीं है तो मेट्रो केस & केरी क्यों झुकी और फ्यूचर ग्रुप को अपना शो बंद क्यों करना पड़ा? इस तथ्य के इर्द-गिर्द बहुत सारे सवाल हैं कि किराना खुदरा हमेशा आसपास, जीवित और सदा रहेगा।


Source: https://epaper.patrika.com/Home/ShareImage?Pictureid=1033b0878f8

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